अल्जाइमर एक ऐसी बीमारी है जिसमें व्यक्ति अपनी सोचने समझने की शक्ति धीरे धीरे खोने लगता है। इस बीमारी के बारे में मरीज से पहले उसके परिवार और आसापास के लोगों को पता चलता है। ऐसा इसलिए क्योंकि अल्जाइमर दिमाग की बिमारी है, और इसकी गिरफ्त में आते ही व्यक्ति दीर्घकालीन के साथ-साथ अपने रोजमर्रा के कामों से भी बेखबर होने लगता है।
अल्जाइमर के लक्षण
- खुद ही चीजों को रखकर भूलना
- एक ही बात को बार बार दोहराना
- खुद से बात करना
- जानी पहचानी जगहों या अपने ही घर में खो जाना
- रोजाना के आसान कामों को करने में भी दिक्कत महसूस होना
- देर रात को निकल कर घूमना
- बात करते वक्त सामने वाले व्यक्ति को घूरना
- काम ना करने पर भी ऐसा लगना कि वह काम हमने कर दिया है
- छोटी छोटी बातों पर चौंक जाना, आदि
क्यों होता है अल्जाइमर
अल्जाइमर होने का एक सबसे बड़ा कारण शारीरिक रूप से अस्वस्थ होना भी है। जो लोग कम उम्र में ही शारीरिक रूप से पीड़ित रहते हैं उनमें अल्जाइमर होने के चांस ज्यादा होते हैं। क्योंकि ऐसे लोगों के मस्तिष्क तंतु वक्त से पहले ही सिकुड़ने लगते हैं। जबकि स्वस्थ लोगों के मस्तिष्क तंतु हमेशा स्वस्थ और क्रियाशील रहते हैं।
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योग से दूर होता है अल्जाइमर
वैसे तो हम पहले ही बता चुके हैं कि इस बीमारी का कोई इलाज नहीं है लेकिन योग एक ऐसा माध्यम है जिसे निरंतर करने से इस बीमारी का हल निकाला जा सकता है। एक्सपर्टों का कहना है कि इस बीमारी को शुरुआत में पता लगते ही व्यायाम करना शुरू कर देना चाहिए। इतना ही नहीं निरंतर योग करने से याद्दाश्त भी बढ़ती है। इसलिए अल्जाइमर के पीड़ितों को रोजाना 20 से 25 मिनट योगा करना चाहिए।
उष्ट्रासन
उष्ट्रासन से रीढ़ में से गुजरने वाली स्त्रायु कोशिकाओं में तनाव पैदा होता है। इसके चलते उनमें रक्त-संचार बढ़ जाता है। इससे याददाश्त तेज होती है। अगर आप रोज तीन मिनट भी इस आसन को करते हैं तो इससे आपको बहुत फायदा होता है।
चक्रासन
चक्रासन मस्तिष्क की कोशिकाओं में खून का प्रवाह बढ़ाने का काम करता है। इससे खून मस्तिष्क की उन कोशिकाओं में भी पहुंचना शुरू हो जाता है, जहां यह पहले नहीं पहुंच पाता था। निस्तेज कोशिकाओं में खून का प्रवाह होते ही मस्तिष्क की पीयूष ग्रंथि से निकलने वाला हार्मोन दिमाग की कार्यक्षमता को बढ़ाता है। इसका नियमित अभ्यास आंख, मस्तिष्क आदि में फायदेमंद होता है।
त्राटक
पलक झपकाए बिना एकटक किसी भी बिंदु पर अपनी आंखें गड़ाए रखना त्राटक कहलाता है। त्राटक से मस्तिष्क के सुप्त केंद्र जाग्रत होने लगते हैं, जिससे याददाश्त में बढ़ोत्तरी होती है। याददाश्त का सीधा संबंध मन और उसकी एकाग्रता से है। मन की एकाग्रता में ही बुद्धि का पैनापन और याददाश्तर की मजबूती छुपी हुई होती है। त्राटक का नियमित अभ्यास एकाग्रता बढ़ाता है।
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