अर्थराइटिस यानी गठिया आज की बदलती जीवनशैली, मोटापा, गलत खानपान आदि वजहों से ये रोग अब केवल बुजुर्गो तक हीं सीमित नहीं रह गया है। बल्कि युवा भी इसका शिकार होते जा रहे है। अर्थराइटिस का सबसे अधिक प्रभाव घुटनों में और उसके बाद कुल्हे की हड्डियों में दिखाई देता है। बहुत लोग समय-समय पर अपने बदन में दर्द और अकड़न महसूस करते हैं। कभी-कभी उनके हाथों, कंधों और घुटनों में भी सूजन और दर्द रहता है तथा उन्हें हाथ हिलाने में भी तकलीफ होती है। ऐसे लोगों को अर्थराइटिस हो सकता है।
अर्थराइटिस जोड़ों की सूजन है। यह एक संयुक्त या एकाधिक जोड़ों को प्रभावित कर सकता है। विभिन्न कारणों और उपचार विधियों के साथ 100 से अधिक विभिन्न प्रकार के गठिया हैं। सबसे आम प्रकारों में से दो ऑस्टियो अर्थराइटिस और रूमेटोइड अर्थराइटिस हैं। अर्थराइटिस जोड़ों के ऊतकों की जलन और क्षति के कारण होता है। जलन के कारण ही ऊतक लाल, गर्म, दर्दनाक और सूज जाते हैं। यह सारी समस्या यह दर्शाती है की आपके जोड़ों में कोई समस्या है। जोड़ वह जगह होती है जहां पर दो हड्डियों का मिलन होता है जैसे कोहनी या घुटना। कुछ तरह के अर्थराइटिस में जोड़ों की बहुत ज्यादा क्षति होती है। अर्थराइटिस के लक्षण आमतौर पर समय के साथ विकसित होते हैं, लेकिन वे अचानक भी प्रकट हो सकते हैं। यह आमतौर पर 65 वर्ष से अधिक उम्र के वयस्कों में देखा जाता है, लेकिन यह बच्चों, किशोरों और युवा वयस्कों में भी विकसित हो सकता है। पुरुषों में और अधिक वजन वाले लोगों की तुलना में महिलाओं में अर्थराइटिस अधिक आम है।
यह इस बीमारी का बहुत अधिक पाया जाने वाला गंभीर रूप है। इस अर्थराइटिस का समय पर प्रभावी उपचार करवाना आवश्यक होता है वरना बीमारी बढ़ने पर एक साल के अन्दर ही शरीर के जोड़ों को काफी नुकसान हो जाता है।
अर्थराइटिस के दर्द का यह रूप सोराइसिस के साथ प्रकट होता है। समय पर और सही इलाज न होने पर यह बीमारी काफी घातक और लाइलाज हो जाती है।
इस तरह का अर्थराइटिस आनुवांशिक हो सकता है। यह उम्र बीतने के साथ प्रकट होता है। यह विशेष रूप से शरीर का भार सहन करने वाले अंगों पीठ, कमर, घुटना और पांव को प्रभावित करता है ।
यह 50 साल की आयु पार कर चुके लोगों को होता है। इसमें गर्दन, कंधा और कमर में असहनीय पीड़ा होती है और इन अंगों को घुमाने में कठिनाई होती है। अगर सही समय पर सही इलाज हो तो इस बीमारी का निदान किया जा सकता है। लेकिन कई कारणों से आमतौर पर इसका इलाज संभव नहीं हो पाता है।
यह बीमारी सामान्यत: शरीर के पीठ और शरीर के निचले हिस्से के जोड़ों में होती है। इसमें दर्द हल्का होता है लेकिन लगातार बना रहता है। इसका उपचार संभव हैं लेकिन सही समय पर इसकी पहचान कर सही इलाज किया जाए जा सकता है।
शरीर में किसी तरह के संक्रमण फैलने के बाद रिएक्टिव अर्थराइटिस होने का खतरा रहता है। आंत या जेनिटोरिनैरी संक्रमण होने के बाद इसके होने की संभावना बढ़ जाती है। इसमें सही इलाज काफी कारगर साबित होता है।
गांठ वाला अर्थराइटिस जोड़ों में मोनोसोडियम युरेट क्रिस्टल के समाप्त होने पर होता है। भोजन में बदलाव और कुछ सहायक दवाओं के कुछ दिन तक सेवन करने से यह बीमारी ठीक हो जाती है।
यह रूमेटायड और गाउट वाले अर्थराइटिस से मिलता जुलता है। सिडडोगाउट में जोडों में दर्द कैल्शियम पाइरोफासफेट या हाइड्रोपेटाइट क्रिस्टल के जोड़ों में जमा होने से होता है।
यह एक ऑटो इम्यून बीमारी है जो जोड़ों के अलावा शरीर के त्वचा और अन्य अंगों को प्रभावित करती है। यह बच्चे पैदा करने वाली उम्र में महिलाओं को होती है। वैसे तो यह जीवन के लिए खतरा पैदा करने वाली बीमारी है लेकिन समय पर इसकी पहचान कर इसे नियंत्रण में रखा जा सकता है।
कार्टिलेज जोड़ो का एक नर्म और लचीला ऊतक है। जब आप चलते हैं और जोड़ों पर दबाव डालते हैं तो यह प्रेशर और शॉक को अवशोषित करके आपके जोड़ों को बचाता है। कार्टिलेज ऊतकों की मात्रा में कमी से कई प्रकार के गठिये होते है। सामान्य चोटें ऑस्टियो आर्थराइटिस का कारण बनती हैं, यह गठिया के सबसे सामान्य रूपों में से एक है। जोड़ों में संक्रमण या चोट कार्टिलेज ऊतकों की प्राकृतिक मात्रा को कम कर सकता है। यदि परिवार के लोगों में यह बीमारी पहले से चली आ रही है तो इस बीमारी के आगे भी बने रहने की संभावना बढ़ जाती है।
गठिया का एक और आम रूप है रुमेटी आर्थराइटिस, यह एक प्रकार का ऑटोइम्यून डिसऑर्डर है। इसकी शुरुआत तब होती है जब आपके शरीर की प्रतिरक्षा प्रणाली शरीर के ऊतकों पर हमला करती है। इन हमलों से सिनोवियम पर प्रभाव पड़ता है। सिनोवियम आपके जोड़ो में पाया जाने वाला एक नर्म टिशु होता है जो ऐसे लिक्विड को बनाता है जिससे कार्टिलेज को पोषण और जोड़ो को चिकनाई मिलती है। रुमेटी गठिया सिनोवियम की एक बीमारी है जो जोड़ों पर हमला करके उन्हें नष्ट करती है। यह जोड़ो के अंदर हड्डी और कार्टिलेज को नष्ट करने का कारण बन सकती है।
वैसे तो इम्यून सिस्टम के हमलों का सही कारण पता नही है, लेकिन वैज्ञानिकों के मुताबिक जीन, हार्मोन और पर्यावरणीय कारण रुमेटी गठिये के जोखिम को दस गुना बढ़ा सकते है।
शुरुआत में मरीज को बार-बार बुखार आता है, मांसपेशियों में दर्द रहता है, हमेशा थकान और टूटन महसूस होती है, भूख कम हो जाती है और वजन घटने लगता है। शरीर के तमाम जोड़ों में इतना दर्द होता है कि उन्हें हिलाने पर ही चीख निकल जाए, खासकर सुबह के समय। इसके अलावा शरीर गर्म हो जाता है, लाल चकत्ते पड़ जाते हैं और जलन की शिकायत भी होती है। जोड़ों में जहां-जहां दर्द होता है, वहां सूजन आना भी इस बीमारी में आम है। जोड़ों के इर्द-गिर्द सख्त गोलाकार गांठें जैसी उभर आती हैं, जो हाथ पैर हिलाने पर चटकती भी हैं। शरीर के किसी भी अंग को हिलाने पर दर्द, जलन और सूजन की तकलीफ झेलनी पड़ती है।
कुछ प्रमुख जांचों के आधार पर इस रोग का पता लगाया जाता है। खून में यूरिक एसिड का स्तर अगर ज्यादा है, तो इसका मतलब है कि व्यक्ति गाउटी अर्थराइटिस से पीड़ित है।साइनोवियल फ्लूड, इसे श्लेष द्रव भी कहते हैं, जो जोड़ों के बीच पाया जाता है। जोड़ों के अंदरसे इस द्रव को लेकर इसका टेस्ट किया जाता है जिसमें,मोनोसोडियम युरेट क्रिस्टल पाए जाते हैं।कभी-कभी यूरिक एसिड मूत्र में भी पाया जाता है, जिसके टेस्ट से गाउटी अर्थराइटिस का पता लगाया जा सकता है। जिस जगह पर सूजन होती है उसका एक्सरे किया जाता है। एडवांस गाउटी अर्थराइटिस में एक्सरे पॉजिटिव हो जाता है। अर्थराइटिस के रोगी को मांसाहार, दाल, पनीर और टमाटर के साथ ही शराब और धूम्रपान से परहेज करना चाहिए।पोषणयुक्त आहार का सेवन करना चाहिए। पर्याप्त मात्रा में पानी पिएं। मोटापे से ग्रस्त हैं, तो वजन कम करें।
अर्थराइटिस व्यक्ति के जोड़ों, आंतरिक अंग और त्वचा को नुकसान पहुंचा सकता है। यह बीमारी आजीवन रहने वाली है, लेकिन अपने शरीर में कुछ बदलाव लाकर आप अर्थराइटिस के तीव्र दर्द को कम कर सकते हैं:
1- अपना वजन कम रखें क्योंकि ज्यादा वज़न से आपके घुटने तथा कूल्हों पर दबाव पड़ता है।
2- कसरत तथा जोड़ों को हिलाने से भी आपको मदद मिलेगी। जोड़ों को हिलाने में आप डाक्टर या नर्स भी आपकी मदद कर सकते हैं।
3- समय−समय पर अपनी दवा लेते रहें। इनसे दर्द और अकड़न में राहत मिलेगी।
4- सुबह गुनगुने पानी से नहाएं।
5- डाक्टर से समय−समय पर मिलते रहें।