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आईवीएफ ट्रीटमेंट लेने के दौरान बढ़ सकता है इन 5 समस्याओं का जोखिम, जरूर बरतें सावधानी

Ivf Treatment Risks In Hindi: आईवीएफ ट्रीटमेंट के दौरान महिला को कुछ समस्याएं हो सकती हैं। हालांकि, समान्य गर्भावस्था में भी रिस्क होते हैं। 

Meera Tagore
Written by: Meera TagoreUpdated at: Jul 24, 2023 15:36 IST
आईवीएफ ट्रीटमेंट लेने के दौरान बढ़ सकता है इन 5 समस्याओं का जोखिम, जरूर बरतें सावधानी

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Ivf Treatment Risks In Hindi: जब नेचुरल तरीके से तमाम कोशिशों के बावजूद महिला मां नहीं बन पाती है, तब जाकर कहीं वो आईवीएफ का सहारा लेती है। लेकिन, यह बात हम सभी जानते हैं कि यह सफर आसान नहीं है। ट्रीटमेंट के दौरान कई तरह के रिस्क रहते हैं और कई तरह की स्वास्थ्य समस्याएं भी महिला को हो सकती है। हालांकि, नेचुरल तरीके से गर्भधारण करने वाली महिलाओं के साथ भी इस तरह के रिस्क रहते हैं, जिसकी हम अनदेखी नहीं कर सकते हैं। जहां तक बात आईवीएफ ट्रीटमेंट के दौरान होने वाली समस्याओं की बात है, तो यह जरूरी नहीं है कि हर महिला को कोई विशेष किस्म की समस्या का सामना करना पड़े। हां, अगर किसी महिला को प्री-एक्सिस्टिंग डायबिटीज है और प्री-एक्सिस्टिंग हाइपरटेंशन जैसी बीमारियां रही हों, तो इन महिलाओं में प्रीमेच्योर डिलीवरी का रिस्क ज्यादा रहता है। इसी तरह, बढ़ती उम्र में अगर महिला आईवीएफ तकनीक के जरिए मां बनना चाहती हैं, तो उनमें भी स्वास्थ्य का समस्याओं का रिस्क बढ़ सकता है। इस संबंध में हमें पुणे स्थित नोवा आईवीएफ फर्टिलिटी में फर्टिलिटी कंसल्टेंट डॉ. करिश्मा दफ्ले से बात की।

प्रीमेच्योर डिलीवरी

मेयो क्लिनिक के अनुसार, "कई रिसर्चों से यह बात साबित हुई है कि आईवीएफ ट्रीटमेंट की वजह से प्रीमेच्योर डिलीवरी का रिस्क थोड़ा बढ़ जाता है, जिससे शिशु भी अंडरवेट हो सकता।" इस आधार पर यह कहा जा सकात है कि प्रीमेच्योर डिलीवरी के कारण शिशु, नॉर्मल डिलीवरी के जरिए जन्में शिशु की तुलना में अंडरवेट होते हैं और उन्हें बीमाारयों का रिस्क भी ज्यादा हो सकता है।

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मल्टीपल बर्थ

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अगर महिला के गर्भाशय में एक से ज्यादा भ्रूण डाले जाए, तो आईवीएफ होने के कारण मल्टीपल बर्थ होने का रिस्क भी बढ़ जाता है। मल्टीपल बर्थ का मतलब है एक साथ कई शिशुओं का जन्म। आमतौर पर, सामान्य लोगों में भी यह मान्यता है कि आईवीएफ ट्रीटमेंट में मल्टीपल बर्थ हो सकते हैं। नतीजतन प्रीमेच्योर बेबी का जन्म हो सकता है और शिशु अंडरवेट भी हो सकते हैं।

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मिसकैरेज

मेयो क्लिनिक की मानें, तो आईवीएफ ट्रीटमेंट करवा रही महिलाओं में मिसकैरेज का रिस्क उतना ही रहता है, जितना कि नेचुरल तरीके से कंसीव करने वाली महिलाओं में होता है। अगर ट्रीटमेंट करवा रही महिला की उम्र ज्यादा है, तो मिसकैरेज का रिस्क भी बढ़ जाता है।’’ इसका मतलब है कि आईवीएफ ट्रीटमेंट से गुजर रही महिलाओं को अपनी उम्र के अनुसार, अपनी हेल्थ का ध्यान रखना चाहिए।

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एक्टोपिक प्रेग्नेंसी

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इस प्रेग्नेंसी के दौरन फर्टिलाइज एग गर्भाशय में न जाकर, किसी अन्य जगह पहुंच जाता है, जैसे फोलोपियन ट्यूब, एब्डोमिनल कैविटी या गर्भाशय ग्रीवा में। इस तरह की प्रेग्नेंसी महिला स्वास्थ्य के लिए बहुत रिस्की होता है। अगर समय रहते एक्टोपिक प्रेग्नेंसी का पता न चले, तो महिला की जान को भी खतरा हो सकता है। अब सवाल है कि क्या आईवीएफ ट्रीटमेंट करवा रही महिलाओं में यह रिस्क होता है? विशेषज्ञों के अनुसार, जितनी महिलाएं यह ट्रीटमेंट करवा रही हैं, उनमें 2 से 5 फीसदी तक महिलाओं में एक्टोपिक प्रेग्नेंसी का रिस्क होता है।

ओवरियन हाइपरस्टिम्यूलेशन सिंड्रोम

ओव्यूलेशन के लिए कई फर्टिलिटी दवाईयों को इंजेक्ट किया जाता है। इसी कारण, ओवरियन हाइपरस्टिम्यूलेशन सिंड्रोम हो सकता है। इस तरह की बीमारी होने पर महिला की ओवरी में सूजन आ जाती है और दर्द भी होने लगता है। ओवरियन हाइपरस्टिम्यूलेशन सिंड्रोम के लक्षण शुरुआती पहले सप्ताह तक रहते हैं। इस दौरान, महिला को हल्का पेट दर्द, सूजन, मतली, उल्टी और दस्त जैसे लक्षण दिख सकते हैं। आमतौर पर यह बीमारी कोई गंभीर समस्या पैदा नहीं करती है। समय के साथ-साथ सही उपचार की मदद से इसे ठीक किया जा सकता है।

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