कहते हैं बच्चे कोरे कागज की तरह होते हैं, जिनमें माता-पिता, समाज और परिवार के लोग रंग भरते हैं। बच्चे अपने आसपास की चीजों से बहुत जल्दी सीखते हैं। इसलिए बच्चों की सही परवरिश के लिए घर, परिवार और समाज का माहौल सही होना बहुत जरूरी है। दूसरी सभी बातों की अपेक्षा बच्चों पर मां-बाप की बातों का असर सबसे ज्यादा पड़ता है। कई बार मां-बाप अपने बच्चों को अंजाने में कुछ ऐसी बातें कह देते हैं, जिसका उनके अवचेतन मस्तिष्क पर बुरा असर पड़ता है। लंबे समय में ऐसी बातें बच्चों के व्यवहार और क्षमता को भी प्रभावित करती हैं। इसलिए आपको अपने बच्चों से कुछ भी कहते समय अपने शब्दों और वाक्यों पर ध्यान देना चाहिए। हम आपको बता रहे हैं 5 ऐसे वाक्य जो अक्सर लोग अपने बच्चों से कहते हैं, लेकिन उन्हें नहीं कहना चाहिए। अगर आप भी बच्चों को डांटते या समझाते समय इन 5 वाक्यों का प्रयोग करते हैं, तो इन्हें कहना बंद कर दें, अन्यथा लंबे समय में ये बातें आपके बच्चे के जीवन को प्रभावित करने लगेंगी।
"घर छोड़कर चले जाओ"
कई बार गुस्से में माता-पिता बच्चों से जब परेशान हो जाते हैं, तो उन्हें कह देते हैं कि वो घर से चला जाए या घर से बाहर निकल जाए। इस छोटी सी बात पर संभव है कि बच्चा रोने लगे या गुस्से में उठकर आस-पड़ोस में कहीं चला जाए। मगर ये बात बच्चों के मन-मस्तिष्क पर बुरा असर डालती है। जब तक बच्चे सक्षम नहीं हैं, तब तक तो वो घूम-फिरकर आपके पास लौट आते हैं। लेकिन बड़े होने पर अगर ऐसी कोई परिस्थिति पैदा होती है, जिससे बच्चे को बहुत तेज गुस्सा आए, तो वो गलत फैसला भी ले सकता है। इसलिए बच्चे के अवचेतन में ये बात मत डालें कि घर में परिस्थितियां अनुकूल न होने पर उसे घर से बाहर निकल जाना चाहिए।
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"काश मैंने तुम्हें पैदा होते ही मार दिया होता"
मां-बाप बच्चों से परेशान होते हैं, तो गुस्से में कई बार ये वाक्य बोल देते हैं। इसी तरह कई बार दुलार में बच्चे को उसकी गलती का एहसास दिलाने के लिए भी मां-बाप हंसते हुए ऐसा बोल देते हैं। मगर इस बात का असर भी बच्चे के मन पर बुरा पड़ता है। हम अक्सर यही समझते हैं कि सेल्फ रिस्पेक्ट या आत्म सम्मान जैसी चीज बड़ों में ही पाई जाती है। लेकिन सच्चाई ये है कि छोटे बच्चों का भी आत्म सम्मान होता है, जिसे ठेस पहुंचाने से उनके अवचेतन मस्तिष्क पर बुरा असर पड़ता है। इसलिए बच्चों को कभी भी ये वाक्य न कहें भले ही उसने कितनी भी बड़ी गलती की हो।
"तुमसे अच्छा तो तुम्हारा भाई, बहन या दोस्त है"
कई बार मां-बाप बच्चों को यह कहते पाए जाते हैं कि तुम अपने भाई/बहन/दोस्त जैसा कभी नहीं बन सकते या तुमसे अच्छा तो अमुक पड़ोसी का बच्चा है। इस तरह की नकारात्मक बातें बच्चों के सामने करना ठीक नहीं है। हर बच्चे की अपनी क्षमता और अपना सामर्थ्य होता है। बच्चा उसी अनुसार काम करता है और निर्णय लेता है। इसलिए आपको अपने बच्चे की तुलना किसी और से नहीं करनी चाहिए। इससे बच्चे के मन में ये भावना घर कर जाती है कि वो कभी भी अच्छा नहीं कर सकता है।
"तुम्हारी उम्र में था तो मैं तुमसे बेहतर था"
अगर आप अपने बच्चे को यह कहकर गलती का एहसास दिलाना चाहते हैं कि आप उसकी उम्र में थे तो आपने बहुत कुछ हासिल कर लिया था तो आप गलत हैं। व्यक्ति की क्षमताएं उसकी परवरिश और उसकी परिस्थिति पर निर्भर करती हैं। अगर आप अपने बचपन में ज्यादा क्षमतावान थे, तो इसका अर्थ यह नहीं है कि आपका बच्चा भी उस उम्र में उसी क्षमता को विकसित कर पाएगा। इसलिए आपको अपने और आपके बच्चे के बीच भी तुलना नहीं करनी चाहिए।
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"तुम हमेशा स्लो काम करते हो"
बहुत सारे मां-बाप बच्चों को इसलिए भी डांटते हैं कि वो उनकी अपेक्षा धीरे काम करते हैं। ये एक सामान्य सी बात है कि एक वस्यक की क्षमता और एक बच्चे की क्षमता में अंतर होता है। इसके अलावा यह भी सच है कि बच्चों का मन वयस्कों की अपेक्षा ज्यादा भटकता है। ऐसे में बच्चों को हमेशा इस बात के लिए चिल्लाना कि वो स्लो काम करता है, गलत है। दरअसल आप अगर बच्चे को यही बात सकारात्मक लहजे में कहे, तो आपको अच्छे परिणाम देखने को मिलेंगे। जैसे- किसी काम के लिए यह कहना कि जल्दी करना वर्ना मार पड़ेगी, आप बच्चे से ये कह सकते हैं कि देखते हैं इस काम को तुम मिनिमम कितने समय में कर सकते हो। इसके अलावा काम को निश्चित समय में करने के लिए आप कोई ईनाम भी दे सकते हैं।
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