Skin Diseases: 6 प्रकार की होती है सोरायसिस की बीमारी, आयुर्वेदिक एक्‍सपर्ट से जानिए Psoriasis का पूरा इलाज

Skin Diseases: सोरायसिस त्‍वचा की एक गंभीर समस्‍या है। अगर आप सोरायसिस से हमेशा के लिए छुटकारा पाने चाहते हैं आयुर्वेदिक तरीके से करें उपचार।

Atul Modi
Reviewed by: डॉ. चंचल शर्माUpdated at: Oct 08, 2020 21:10 ISTWritten by: Atul Modi
Skin Diseases: 6 प्रकार की होती है सोरायसिस की बीमारी, आयुर्वेदिक एक्‍सपर्ट से जानिए Psoriasis का पूरा इलाज

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सोरायसिस एक ऐसी बीमारी है जिसका संबंध सीधे हमारी त्वचा के साथ रहता है, सोरायसिस को बहुत जगह अपरस के नाम से भी जाना जाता है। सोरायसिस की बीमारी में मुख्य रूप से त्वचा पर एक मोटी परत जैसी बन जाती है जो यह परत लाल रंग के चकत्ते के रूप में दिखाई देती है। लाल रंग के चकत्ते में खुजली करने से दर्द और सूजन महसूस होने लगती है यह एक असाध्य रोग के जैसा है परंतु आयुर्वेद में इसका उपचार पूरी तरह से संभव है। इस रोग के कारण हमारे शरीर की जो रोग प्रतिरोधक क्षमता होती है वह धीरे-धीरे कमजोर पड़ने लगती है।

सोरायसिस रोग से पीड़ित व्यक्ति जीवन भर इस समस्या से परेशान ही रहता है क्योंकि सोरायसिस का अभी तक एलोपैथ में कोई भी इलाज नहीं बन पाया है लेकिन अब आपको घबराने की बिल्कुल भी जरूरत नहीं है क्योंकि आशा आयुर्वेदा की डॉक्टर चंचल शर्मा जी ने अपने वर्षों के शोध से इस बीमारी को जड़ से खत्म करने के लिए एक ऐसी आयुर्वेदिक दवा इजाद की है जिससे सोरायसिस का संपूर्ण निदान पूरी तरह से संभव है।

सोरायसिस क्‍या है-Psoriasis Kya Hai?

सोरायसिस की बीमारी मानव त्वचा से जुड़ी एक ऑटोइम्यून डिजीज है यह बीमारी त्वचा पर कोशिकाओं को इकट्ठा जमा कर लेती है जिससे सफेद रक्त कोशिकाओं की कमी होने के कारण हमारी त्वचा सामान्य से अधिक तेजी से बढ़ने लगती है और अंत में घाव जैसी हो जाती है या फिर या एक प्रकार से शरीर में गोल गोल चकत्ते बन जाते हैं। सोरायसिस की बीमारी जब अत्यधिक बढ़ जाती है तो इन लाल चकत्तों से ब्लड निकलने लगता है और इनमें सूजन भी आ जाती है जिससे यह मानसिक विकार भी उत्पन्न कर सकती है। सोरायसिस की बीमारी किसी भी उम्र एवं जेंडर के लोगों को हो सकती है।

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सोरायसिस के प्रकार- Types Of Psoriasis In Hindi

सोरायसिस की बीमारी के प्रकार की बात करें तो यह भिन्न-भिन्न प्रकार की होती है पहला है प्लेक सोरायसिस, दूसरा है गटेट या चित्तीदार सोरायसिस, पस्चुलर सोरायसिस, सोरियाटिक अर्थराइटिस, इन्‍वर्स सोरायसिस, एरि‍थ्रोडर्मिक सोरायसिस यह तो हुए सभी सोरायसिस के प्रकार अब आगे आर्टिकल में हम इन सभी के बारे में विस्तार पूर्वक बताएंगे।

1. प्लेक सोरायसिस

प्लेक सोरायसिस एक सामान्य प्रकार का सोरायसिस है। इस प्रकार के सोरायसिस से 10 में 8 लोग प्रभावित हैं। इस सोरायसिस में शरीर पर चांदी के रंग जैसे सफेद लाइने बन जाती है और लाल रंग के धब्बे के साथ बहुत तेजी से जलन होती है। यह सोरायसिस शरीर के किसी भी अंग पर हो सकती है लेकिन अधिकांशतः यह सिर, पेट के नीचे का भाग, घुटनों तथा पीठ में नीचे की ओर मुख्य रूप से होती है। इसमें हमारे शरीर की त्वचा पर लाल एवं छिकलेदार, मोटे चकत्ते निकलने लगते हैं और यह भिन्न-भिन्न आकार में परिवर्तित होकर हमारे शरीर की काफी जगह घेर लेती है। 

2. गटेट या चित्तीदार सोरायसिस

इस प्रकार के सोरायसिस मुख्य रूप से छोटी उम्र के बच्चों के हाथ, पैर, गले, पेट या फिर पीठ पर होती हैं। यह सोरायसिस छोटे-छोटे गुलाबी रंग के दानों के रूप में दिखाई देते हैं यह अधिकांशतः बच्चों के हाथ के ऊपरी भाग, जांघ और सिर पर होती हैं। इस सोरायसिस में भी प्लेक सोरायसिस जैसी शरीर की त्वचा पर एक मोटी परत बन जाती है जो कि बहुत ही तकलीफदेह होती है। 

3. पस्चुलर सोरायसिस

यह सोरायसिस थोड़ी सा अन्य सोरायसिस से अलग होता है। यह सोरायसिस बड़ी उम्र के लोगों में ज्यादा मात्रा में होता है। यह मुख्य रूप से हथेलियों, तलवों या फिर पूरे शरीर में लाल रंग के दाने जैसे हो जाते हैं। इन दानों में मवाद होने की भी संभावना होती है। यह सोरायसिस देखने में संक्रमित के जैसा प्रतीत होता है यह अधिकांशतः हाथों एवं पैरों में होता है परंतु इस चीज की पूरी पुष्टि नहीं हो सकी है यह शरीर के किसी भी हिस्से में हो सकता है। सोरायसिस के इस प्रकार के कारण कई बार मरीज को बुखार तथा उल्टी जैसी समस्याओं का सामना भी करना पड़ सकता है। 

4. सोरियाटिक अर्थराइटिक

यह सोरायसिस और अर्थराइटिस का मिलाजुला मिश्रण है। यह 70 फ़ीसदी मरीजों में लगभग 10 वर्ष की आयु से ही प्रारंभ हो जाता है इस सोरायसिस के अंतर्गत मरीज के जोड़ो एवं घुटनों में दर्द उंगलियों तथा नाखूनों में सूजन जैसी समस्याएं उत्पन्न होने लगती हैं ।

5. एरि‍थ्रोडर्मिक सोरायसिस

इस प्रकार के सोरायसिस से पीड़ित व्यक्ति के चेहरे की त्वचा पर जलन जैसी समस्या के साथ-साथ लाल चकत्ते हो जाते हैं। मरीज के शरीर का तापमान सामान्य से अधिक हो जाता है तथा उसके हृदय की गति अधिक हो जाती है। सोरायसिस की यह बीमारी धीरे-धीरे पूरी त्वचा में फैलने लगती है जिसके कारण त्वचा में जलन, खुजली, हृदय गति तथा शरीर का तापमान कभी कम तथा कभी ज्यादा जैसी समस्याएं पैदा होने लगती हैं। इस प्रकार के सोरायसिस के कारण मरीज को संक्रमण तथा निमोनिया जैसी गंभीर बीमारी का सामना भी करना पड़ सकता है। 

6. इन्‍वर्स सोरायसिस

इस प्रकार के सोरायसिस मुख्य रूप से स्तनों के निचले हिस्से, बगल, काख या जांघों के ऊपरी भाग में लाल-लाल बड़े चकत्ते बन जाते हैं तथा यह अधिक पसीने और रगड़न खाने के कारण भी होते हैं। 

सोरायसिस के लक्षण

  • शरीर की त्वचा पर लाल चकत्तों के साथ-साथ सूजन होना।
  • लाल चकत्तों के ऊपर सफेद चांदी जैसी सूखी पपड़ी का होना।
  • त्वचा में रुखापन होना।
  • चकत्तों के नजदीक खुजली और जलन महसूस होना।
  • नाखूनों की मोटाई बढ़ जाना तथा दाग धब्बे पड़ना।
  • सूजन एवं शरीर के जोड़ो में दर्द होना।

सोरायसिस होने के कारण

आयुर्वेद के अनुसार सोरायसिस होने के बहुत सारे कारण हैं। सोरायसिस की बीमारी को अनुवांशिक बीमारी भी कहा जाता है क्योंकि यह परिवार में पीढ़ी दर पीढ़ी एक से दूसरी पीढ़ी में स्थानांतरित होती जाती है। जैसे कि यदि अगर आपके माता-पिता में से किसी एक को सोरायसिस की बीमारी है तो यह बच्चे में होने की 15% तक की संभावना बढ़ जाती है। यदि सोरायसिस की बीमारी से माता और पिता दोनों प्रभावित हैं तो यह बच्चे में होने की इसकी संभावना 60% तक बढ़ जाती है। इसके अलावा भी बहुत सारे ऐसे कारण हैं जिनके द्वारा सोरायसिस की बीमारी होती है जैसे निमित्त शराब का सेवन, धूम्रपान, बैक्टीरियल इनफेक्शन, धूप से त्वचा में इन्फेक्शन, त्वचा का कट जाना, मधुमक्खी इत्यादि के काट लेने से भी सोरायसिस जैसी बीमारी होने की संभावना बढ़ जाती है। 

आशा आयुर्वेदा की आयुर्वेदिक एक्सपर्ट डॉक्टर चंचल शर्मा जी का कहना है कि बहुत सारे लोग एलोपैथिक इलाज से सोरायसिस जैसी बीमारी को ठीक करने का प्रयास करते हैं किंतु इस बीमारी का उचित इलाज न मिल पाने के कारण अंत में आयुर्वेदिक उपाय ही इस बीमारी को ठीक करने में कारगत साबित होते है।

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सोरायसिस का आयुर्वेद उपचार (Ayurvedic Treatment For Psoriasis) 

सोरायसिस के इलाज में पंचकर्म महत्वपूर्ण भूमिका निभाता है। वर्ष में दो बार आयुर्वेदिक पंचकर्म चिकित्सा वमन एवं विरेचन करने से इसे बहुत हद तक कंट्रोल किया जा सकता है। 

  • अग्निकर्म करने से इसके फैलाव को रोका जाता है यह एक त्रिदोष व्याधि है इसलिए त्रिदोष शामक और सदुपयोग करने से रोग प्रतिरोधक क्षमता बढ़ने से रोगी को बेहतरीन परिणाम मिलते हैं। 
  • आयुर्वेदिक अवसाद जैसे पटोलकटू  रोहिणी, कषाय, महातिक्तक कषाय, खदिरारिष्ट इत्यादि आयुर्वेदिक चिकित्सक परामर्श से लेने से अत्यंत उपयोगी सिद्ध होते हैं।
  • खानपान में कप वर्धक आहार विहार जैसे दूध से बने पदार्थ, दही, मैदा, तला हुआ भोजन नहीं खाना चाहिए। साथ ही सुपाच्य आहार लेना चाहिए।
  • मिर्च मसाला, खट्टा, बेसन, मैदा आदि का सेवन करने से बचना चाहिए।
  • नियमित व्यायाम, अनुलोम विलोम, नाड़ी शोधन इत्यादि से भी शरीर का Detoxification होता है वह रोग जल्दी से ठीक होता है।

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